हम तन्हा तसल्ली से रहते है बेकार उलझाया ना करे !
खुद-ब-खुद शामिल हो गए तुम मेरी साँसों में,
डर लगता है 'डर' के होने से ये 'डर' है जो मुझे निडर नहीं होने दे रहा।
Punjabi Poetry – Irrespective of where you belong to wealthy society usually grabs the attention of people towards it. Pakistan’s populous location Punjab possesses abundant lifestyle. It implicates deep affect within the natives and language bearers around the globe.
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
कुछ जीवन का सार हो जाए और बचा हुआ मेरा प्यार हो जाए, तू हो तो ये जीवन श्रन्गार हो जाए।
नाराज़गी सी बन गयी है ज़िंदगी की डोर, मेरी तो नहीं रही किसी और की हो गयी है ये डोर।
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
بے لوث سجن جگ تے بس shayri باپ ہی ہوندا اے ویلے ماڑے چنگے جیہڑا سدا نال کھلوندا اے
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
"कठपुतली बेजुबान ही सही लेकिन उसके किरदारों को पूरी दुनिया महसूस करती है।"
लोग जलते है मुझसे, तुम्हारे साथ देख कर।
"तुम्हारी कठपुतली वैसा ही प्रदर्शन करेगी जैसा तुम चाहोगे।"
मानव शरीर की रचना कुछ तत्वों से होती है। दार्शनिकों की दृष्टि में वो तत्व अग्नि, वायु, मिट्टी और जल हैं। इन तत्वों में जब भ्रम पैदा होता है तो मानव शरीर अपना संतुलन खो देता है। अर्थात ग़ालिब की भाषा में जब तत्वों में संतुलन नहीं रहता तो इंद्रियाँ अर्थात विभिन्न शक्तियां कमज़ोर होजाती हैं। चकबस्त इसी तथ्य की तरफ़ इशारा करते हैं कि जब तक मानव शरीर में तत्व क्रम में हैं मनुष्य जीवित रहता है। और जब ये तत्व परेशान हो जाते हैं अर्थात उनमें संतुलन और सामंजस्य नहीं रहता है तो मृत्यु होजाती है।